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चीन के लिए भारत में बिजनेस करना होगा मुश्किल, ये फैसले बनेंगे परेशानी


केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी के अनुसार, देश में चीन के खिलाफ गहरी भावनाएं हैं। लोग प्रदर्शन कर चीन के खिलाफ अपने रुख का इजहार कर रहे हैं। जहां तक संभव हो सके, अपनी मर्जी से चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने की जरूरत है...
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लद्दाख में एलएसी पर चीनी सैनिकों की कायराना हरकत से देश में गुस्सा है। चीन के लिए भारत में अब व्यापार करना आसाना नहीं रहेगा। केंद्र सरकार कई ऐसे कठोर फैसले लेने जा रही है, जिसके चलते चीनी कंपनियों की मुसीबत बढ़ जाएगी।

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पहले से जारी अनुबंधों को छोड़कर नई योजनाओं एवं निवेश के लिए चीनी कंपनियों के साथ कोई दस्तावेज साइन नहीं होंगे। देश में विभिन्न मंत्रालयों की एक कमेटी बनाई गई है, जो चीनी कंपनियों या उनकी तकनीक का विकल्प तलाशेगी।
अगर वह उत्पाद पूरी तरह से स्वदेशी पैटर्न पर नहीं तैयार हो सकता है, तो उसके लिए चीन को छोड़कर अन्य किसी देश की मदद ली जाएगी। चीन से आने वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) पर कैप लगाई जा रही है।
यानी मौजूदा दस फीसदी की सीमा को कम कर उसे पांच फीसदी किया जा सकता है। इसके लिए 'आर्थिक मामलों का विभाग' और 'भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड' (सेबी) को मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी के अनुसार, देश में चीन के खिलाफ गहरी भावनाएं हैं। लोग प्रदर्शन कर चीन के खिलाफ अपने रुख का इजहार कर रहे हैं। जहां तक संभव हो सके, अपनी मर्जी से चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने की जरूरत है।

देश की जनता यही चाहती है। दूसरी ओर वाणिज्य मंत्रालय भी चीनी कंपनियों से दूरी बनाने में जुट गया है। विभिन्न देशों में स्थित भारतीय मिशनों से संपर्क कर निर्यात की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।

इन दूतावासों को 15 सौ भारतीय उत्पादों की सूची भेजी गई है। इनमें कृषि रसायन, मसाले, कपड़ा व चमड़े से बनी वस्तुएं शामिल हैं। निर्यात संवर्द्धन परिषद ने दूतावासों के जरिए करीब डेढ़ दर्जन देशों से संपर्क साधा है।

वाणिज्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, केंद्र सरकार ने उन उत्पादों का गहराई से अध्ययन किया है, जो मौजूदा समय में चीन से आते हैं। इनकी संख्या करीब 11 सौ बताई गई है।

चीन से आयात किए जाने वाले सामान का जब अलग-अलग विश्लेषण किया गया तो पता चला कि इस सूची में से आधे उत्पाद ऐसे हैं जो भारत व चीन एक दूसरे तक पहुंचाते हैं।

बाकी के उत्पादों में से बहुत सी वस्तुएं ऐसी हैं, जिनका उत्पादन स्वदेश में हो सकता है। करीब 170 उत्पाद ऐसे मिले हैं, जो पड़ोसी देशों से भारत में आते हैं।
निर्यात ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के लिए दूतावासों की मदद
केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल कहते हैं कि हम चीनी कंपनियों के तैयार उत्पादों का विकल्प तेजी से तलाश रहे हैं। हमारा प्रयास है कि वे वस्तुएं स्वदेश में ही तैयार हो जाएं। तकनीक और कच्चे माल को लेकर एक प्रभावी नीति बनाई जा रही है।

भारत का निर्यात ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने के लिए दूतावासों की मदद ली जा रही है। चीन से आने वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) की सीमा तय करने पर गंभीरता से विचार हो रहा है।

मौजूदा नीति के अंतर्गत एफपीआई निवेशक किसी भी सूचीबद्ध शेयर में 10 फीसदी तक निवेश कर सकता है। केंद्र सरकार अब इसे कम कर 5 फीसदी करने की कवायद कर रही है।

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इसका ड्राफ्ट डीईए और सेबी तैयार कर रहा है। निवेश करने के नियमों में कई तरह के नए एवं सख्त प्रावधान शामिल किए जा सकते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिक्योरिटी क्लीयरेंस और बीआईएस की गुणवत्ता से संबंधित जांच रिपोर्ट के लिए नई एसओपी बनाई जा रही हैं।

इनके बाद अगर चीन की कोई कंपनी निवेश के लिए आवेदन करती है, तो उसे मंजूरी आसानी से नहीं मिलेगी। गृह मंत्रालय प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आवेदनों की गहराई से जांच पड़ताल कर रहा है।

खासतौर पर चीन से जो 11 सौ करोड़ रुपये के सात आवेदन आए हैं, उनकी क्लीयरेंस के लिए कई एजेंसियों की रिपोर्ट ली मांगी गई है। मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि एफडीआई के मौजूदा आवेदनों को स्वीकृति मिलने में देरी हो सकती है।

सामान्य तौर पर ऐसी मंजूरी दो से तीन माह में मिल जाती है, लेकिन अब चीन के साथ जारी सीमा विवाद के चलते इन आवेदनों की क्लीयरेंस में देरी होना लाजमी है।

गृह मंत्रालय इन प्रस्तावों को विभिन्न एजेंसियों की रिपोर्ट मिलने के बाद ही अपनी स्वीकृति देगा। माना जा रहा है कि जब तक सीमा विवाद नहीं निपट जाता, तब तक यह क्लीयरेंस मिलना मुश्किल है।

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